गुलिस्ताँ Poetry (page 10)

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर

फ़िगार उन्नावी

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा

फ़ाज़िल अंसारी

गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

कीसा-ए-गुल में बंद थी ख़ुशबू

फ़रताश सय्यद

वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

वही मैं हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

अल्लाह के बंदों की है दुनिया ही निराली

फ़ारूक़ बाँसपारी

कोहसार का ख़ूगर है न पाबंद-ए-गुलिस्ताँ

फ़ारूक़ बाँसपारी

नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा

फ़ारिग़ बुख़ारी

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

फ़रहान सालिम

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

फ़रीद जावेद

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

तक़ाज़ा

फ़रीद इशरती

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

फ़रीद इशरती

कहीं यक़ीं से न हो जाएँ हम गुमाँ की तरह

फ़रह इक़बाल

यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले

फ़ना निज़ामी कानपुरी

या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते

फ़ना निज़ामी कानपुरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

आँखों में नमी आई चेहरे पे मलाल आया

फ़ना बुलंदशहरी

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो

फ़ैज़ुल हसन

हम ने सहरा को सजाया था गुलिस्ताँ की तरह

फ़ैज़ुल हसन

ऐ दिल अच्छा नहीं मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ हो जाना

फ़ैज़ुल हसन

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इंतिसाब

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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