करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
मिरा साजन बहार-ए-अंजुमन है
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मेरी जाँ वो बादा-ख़्वारी याद है
पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का
पानी होवे आरसी उस मुख को देख
वही क़द्र 'फ़ाएज़' की जाने बहुत
जो कहिए उस के हक़ में कम है बे-शक
तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
ऐ ख़ूब-रू फ़रिश्ता सियर-अंजुमन में आ
रात दिन तू रहे रक़ीबाँ-संग
उश्शाक़ जाँ-ब-कफ़ खड़े हैं तेरे आस-पास
मरे दिल बीच नक़्श-ए-नाज़नीं है
मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज