तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
मेरे दिल में शौक़ है दीदार का
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चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ
रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे
मिरा महबूब सब का मन हरन है
करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
ऐ ख़ूब-रू फ़रिश्ता सियर-अंजुमन में आ
पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का
मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज
मरे दिल बीच नक़्श-ए-नाज़नीं है
उश्शाक़ जाँ-ब-कफ़ खड़े हैं तेरे आस-पास
अब्र का साया ओ सब्ज़ा राह का
जो कहिए उस के हक़ में कम है बे-शक