मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज
कहने लगी कि हम सूँ न कर बात तू बुरी
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(403) Peoples Rate This
करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
रात दिन तू रहे रक़ीबाँ-संग
मिरा महबूब सब का मन हरन है
चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ
अब्र का साया ओ सब्ज़ा राह का
तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
मेरी जाँ वो बादा-ख़्वारी याद है
ज़ुल्फ़ तेरी हुई कमंद मुझे
रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे
पानी होवे आरसी उस मुख को देख
जो कहिए उस के हक़ में कम है बे-शक