अब्र का साया ओ सब्ज़ा राह का
जान-ए-मन रथ की सवारी याद है
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मुँह फूल से रंगीं था व सारी थी उस हरी
मिरा महबूब सब का मन हरन है
ऐ ख़ूब-रू फ़रिश्ता सियर-अंजुमन में आ
ज़ुल्फ़ तेरी हुई कमंद मुझे
मरे दिल बीच नक़्श-ए-नाज़नीं है
तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
उश्शाक़ जाँ-ब-कफ़ खड़े हैं तेरे आस-पास
रास्त अगर सर्व सी क़ामत करे
जो कहिए उस के हक़ में कम है बे-शक
करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का