चलो चलें Poetry (page 20)

तू साथ है मगर कहीं तेरा पता नहीं

अकरम नक़्क़ाश

खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी

अकरम नक़्क़ाश

गहरी सूनी राह और तन्हा सा मैं

अकरम नक़्क़ाश

सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना

अकरम महमूद

निकल रहा हूँ यक़ीं की हद से गुमाँ की जानिब

अकरम महमूद

ख़्वाहिश-ए-जादा-ए-राहत से निकलता कैसे

अख्तर शुमार

मुझे ले चल

अख़्तर शीरानी

जो फ़क़त शोख़ी-ए-तहरीर भी हो सकती है

अख़तर शाहजहाँपुरी

ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है

अख़्तर रज़ा सलीमी

फ़ुरात-ए-चश्म में इक आग सी लगाता हुआ

अख़्तर रज़ा सलीमी

नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे

अख़तर मुस्लिमी

वो शायद कोई सच्ची बात कह दे

अख़्तर होशियारपुरी

हमें ख़बर है कोई हम-सफ़र न था फिर भी

अख़्तर होशियारपुरी

ज़मीन पर ही रहे आसमाँ के होते हुए

अख़्तर होशियारपुरी

मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया

अख़्तर होशियारपुरी

हरीफ़-ए-दास्ताँ करना पड़ा है

अख़्तर होशियारपुरी

रहबर-ए-तब्ल-ओ-निशाँ और ज़रा तेज़ क़दम

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

कोशिश-ए-पैहम को सई-ए-राएगाँ कहते रहो

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

रह-ए-गुमाँ से अजब कारवाँ गुज़रते हैं

अकबर हमीदी

ये शौक़ सारे यक़ीन-ओ-गुमाँ से पहले था

अकबर अली खान अर्शी जादह

वही गुमाँ है जो उस मेहरबाँ से पहले था

अकबर अली खान अर्शी जादह

जिस दिल में तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं होता

ऐश देहलवी

अब जुनूँ के रत-जगे ख़िरद में आ गए

ऐनुद्दीन आज़िम

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

शीशे शीशे को पैवस्त-ए-जाँ मत करो

अहसन यूसुफ़ ज़ई

ख़याल वो भी मिरे ज़ेहन के मकान में था

अहसन इमाम अहसन

मक़ाम-ए-हिज्र कहीं इम्तिहाँ से ख़ाली है

अहमद निसार

ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात

अहमद शहरयार

हद्द-ए-गुमाँ से एक शख़्स दूर कहीं चला गया

अहमद शहरयार

राज़-ए-दरून-ए-आस्तीं कश्मकश-ए-बयाँ में था

अहमद शहरयार

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