हाल Poetry (page 52)

मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे

अख़लाक़ बन्दवी

लगा के आग बुझाने की बात करते हो

अख़लाक़ अहमद आहन

अकेले अकेले ही पा ली रिहाई

अख़लाक़ अहमद आहन

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

अकबर हैदराबादी

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

अकबर हैदराबादी

क्या पूछते हो 'अकबर'-ए-शोरीदा-सर का हाल

अकबर इलाहाबादी

कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी

अकबर इलाहाबादी

जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख

अकबर इलाहाबादी

जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली

अकबर इलाहाबादी

तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है

अकबर इलाहाबादी

नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की

अकबर इलाहाबादी

मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर

अकबर इलाहाबादी

जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ

अकबर इलाहाबादी

इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा

अकबर इलाहाबादी

चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं

अकबर इलाहाबादी

तेरा ख़याल जाँ के बराबर लगा मुझे

अकबर अली खान अर्शी जादह

उस ने पूछा था क्या हाल है

अजमल सिराज

किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है

अजमल सिराज

तेरे सिवा किसी की तमन्ना करूँगा मैं

अजमल सिराज

नज़र आ रहे हैं जो तन्हा से हम

अजमल सिराज

किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है

अजमल सिराज

और तो ख़ैर क्या रह गया

अजमल सिराज

दर्द-ए-मुसलसल से आहों में पैदा वो तासीर हुई

आजिज़ मातवी

उन को अपने क़रीब देखा है

अजीत कुमार दिल

ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं

ऐतबार साजिद

वो पहली जैसी वहशतें वो हाल ही नहीं रहा

ऐतबार साजिद

तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो

ऐतबार साजिद

तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था

ऐतबार साजिद

न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का

ऐतबार साजिद

मुझे ऐसा लुत्फ़ अता किया कि जो हिज्र था न विसाल था

ऐतबार साजिद

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