हिज्र Poetry (page 10)

न दिखाइयो हिज्र का दर्द-ओ-अलम तुझे देता हूँ चर्ख़-ए-ख़ुदा की क़सम

शाह नसीर

जो ऐन वस्ल में आराम से नहीं वाक़िफ़

शाह नसीर

दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था

शाह नसीर

देख तू यार-ए-बादा-कश! मैं ने भी काम क्या किया

शाह नसीर

ऐन मुमकिन है किसी रोज़ क़यामत कर दें

शगुफ़्ता अल्ताफ़

बला जाने किसी की हिज्र में इस दिल पे क्या गुज़री

शाग़िल क़ादरी

हम ख़राबे में बसर कर गए ख़ामोशी से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

वो जिन की छाँव में पले बड़े हुए

शफ़ीक़ सलीमी

कुंज-ए-तन्हाई बसाए हिज्र की लज़्ज़त में हूँ

शफ़ीक़ सलीमी

फिर उसी बुत से मोहब्बत चुप रहो

शादाब उल्फ़त

इश्क़ में ज़ोर उम्र-भर मारा

शाद लखनवी

ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम

शाद अज़ीमाबादी

तेरी ज़ुल्फ़ें ग़ैर अगर सुलझाएगा

शाद अज़ीमाबादी

काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का

शाद अज़ीमाबादी

अपनी मजबूरी को हम दीवार-ओ-दर कहने लगे

शबनम रूमानी

सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को उलझनों में न डाल

शब्बीर नाज़िश

खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान

सीमाब ज़फ़र

ये किस ने शाख़-ए-गुल ला कर क़रीब-ए-आशियाँ रख दी

सीमाब अकबराबादी

शायद जगह नसीब हो उस गुल के हार में

सीमाब अकबराबादी

हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें

सीमाब अकबराबादी

एक बस तू नहीं मिलता है मुझे खोने को

सीमा नक़वी

बिस्तर-ए-हिज्र की शिकनों पे कहानी लिख दे

सय्यद ज़िया अल्वी

परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था

सावन शुक्ला

कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हिसाब-ए-तर्क-तअल्लुक़ तमाम मैं ने किया

सऊद उस्मानी

बिछड़ गया है तो अब उस से कुछ गिला भी नहीं

सऊद उस्मानी

अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं

सरवत ज़ेहरा

इर्तिक़ा

सरवत ज़ेहरा

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