हिज्र Poetry (page 8)

न कहो ए'तिबार है किस का

शैख़ अली बख़्श बीमार

दम न निकला यार की ना-मेहरबानी देख कर

शैख़ अली बख़्श बीमार

यूँ अपने दिल के बोझ को कुछ कम किया गया

शहज़ाद रज़ा लम्स

हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे

शहपर रसूल

मर गए हैं जो हिज्र-ए-यार में हम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

तिरे ख़याल को भी फ़ुर्सत-ए-ख़याल नहीं

शाज़िया अकबर

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

शाज़ तमकनत

तेरी सी भी आफ़त कोई ऐ सोज़िश-ए-तब है

शौक़ क़िदवाई

आँखों में हिज्र चेहरे पे ग़म की शिकन तो है

शमीम रविश

सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का

शमीम क़ासमी

किसी ट्रेन के नीचे वो कट गया होता

शमीम क़ासमी

तिलिस्म है कि तमाशा है काएनात उस की

शमीम हनफ़ी

जब क़ाफ़िला यादों का गुज़रा तो फ़ज़ा महकी

शकील ग्वालिआरी

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

वो हम से दूर होते जा रहे हैं

शकील बदायुनी

हम हैं और उन की ख़ुशी है आज-कल

शकील बदायुनी

तवील हिज्र है इक मुख़्तसर विसाल के बा'द

शकील आज़मी

बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ख़्वाह महसूर ही कर दें दर-ओ-दीवार मुझे

शहज़ाद क़मर

बहुत घुटन है यहाँ पर कोई बचा ले मुझे

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का

शहज़ाद अहमद

जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है

शहरयार

ऐसे हिज्र के मौसम कब कब आते हैं

शहरयार

तेरे वा'दे को कभी झूट नहीं समझूँगा

शहरयार

तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था

शहरयार

मिशअल-ए-दर्द फिर एक बार जला ली जाए

शहरयार

जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है

शहरयार

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