हिज्र Poetry (page 7)

रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा

सिराज औरंगाबादी

पीव के आने का वक़्त आया है

सिराज औरंगाबादी

क्या बला सेहर हैं सजन के नयन

सिराज औरंगाबादी

काफ़िर हुआ हूँ रिश्ता-ए-ज़ुन्नार की क़सम

सिराज औरंगाबादी

जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है

सिराज औरंगाबादी

जिस कूँ मुल्क-ए-बे-ख़ुदी का राज है

सिराज औरंगाबादी

हर हर वरक़ पे क्यूँ कि लिखूँ दास्तान-ए-हिज्र

सिराज औरंगाबादी

अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज

सिराज औरंगाबादी

वीराँ बहुत है ख़्वाब-महल जागते रहो

सिराज अजमली

वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया

सिदरा सहर इमरान

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

सिदरा सहर इमरान

बस एक बूँद थी औराक़-ए-जाँ में फैल गई

सिद्दीक़ मुजीबी

आग को फूल कहे जाएँ ख़िर्द-मंद अपने

सिद्दीक़ शाहिद

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

ऐ रश्क-ए-महर कोई भी तुझ सा हसीं नहीं

श्याम सुंदर लाल बर्क़

बेजा न था उठ बैठना बेचैनी से मेरा

शऊर बलगिरामी

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

शुजाअत इक़बाल

आज देखा जो कोई शख़्स दीवाना मिरे दोस्त

शुजाअत इक़बाल

दूसरी बातों में हम को हो गया घाटा बहुत

शुजा ख़ावर

चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा

शुजा ख़ावर

दिल की इक हर्फ़-ओ-हिकायात है ये भी न सही

शोला अलीगढ़ी

दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा

शोला अलीगढ़ी

याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

पूछते क्या हो जो हाल-ए-शब-ए-तन्हाई था

शिबली नोमानी

कुछ अकेली नहीं मेरी क़िस्मत

शिबली नोमानी

ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है

ज़ौक़

नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा

ज़ौक़

लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले

ज़ौक़

बज़्म में ज़िक्र मिरा लब पे वो लाए तो सही

ज़ौक़

बाग़-ए-आलम में जहाँ नख़्ल-ए-हिना लगता है

ज़ौक़

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