हिज्र Poetry (page 5)

बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है

ताज सईद

इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी

इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी

ख़्वाब डसते रहे बिखरते रहे

ताहिरा जबीन तारा

सुकून-ए-दिल में वो बन के जब इंतिशार उतरा तो मैं ने देखा

ताहिर फ़राज़

मैं तिरे हिज्र में जो ज़िंदा हूँ

ताहिर अज़ीम

मैं तिरे हिज्र की गिरफ़्त में हूँ

ताहिर अज़ीम

ये जो शीशा है दिल-नुमा मुझ में

ताहिर अज़ीम

बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे

ताहिर अज़ीम

बे-घरी

ताबिश कमाल

'ताबिश' हवस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ तक

ताबिश देहलवी

धूमें मचाएँ सब्ज़ा रौंदें फूलों को पामाल करें

ताबिश देहलवी

देख क़ासिद को मिरे यार ने पूछा 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई

याँ तलक के है तिरे हिज्र में फ़रियाद कि बस

ताबाँ अब्दुल हई

तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब

ताबाँ अब्दुल हई

ख़ूब-रू जो एक का महबूब नहीं

ताबाँ अब्दुल हई

इन ज़ालिमों को जौर सिवा काम ही नहीं

ताबाँ अब्दुल हई

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

ताबाँ अब्दुल हई

ग़ैर के हाथ में उस शोख़ का दामान है आज

ताबाँ अब्दुल हई

दिलबर से दर्द-ए-दिल न कहूँ हाए कब तलक

ताबाँ अब्दुल हई

कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं

तअशशुक़ लखनवी

जब गुज़रती है शब-ए-हिज्र मैं जी उठता हूँ

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

चाहूँ तो अभी हिज्र के हालात बता दूँ

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें

सय्यद शकील दस्नवी

ये ज़ाद-ए-राह हमेशा सफ़र में रख लेना

सय्यद शकील दस्नवी

ये कज-अदाई ये ग़म्ज़ा तिरा कभी फिर यार!

सय्यद काशिफ़ रज़ा

तिरी आँखों को तेरे हुस्न का दर जाना था

सय्यद काशिफ़ रज़ा

पुल-ए-सिरात न था दश्त-ए-नैनवा भी न था

सय्यद काशिफ़ रज़ा

पहलू-ए-ग़ैर में दुख-दर्द समोने न दिया

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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