हिज्र Poetry (page 4)

किसी से और तो क्या गुफ़्तुगू करें दिल की

उम्मीद फ़ाज़ली

मिरी भँवों के ऐन दरमियान बन गया

उमैर नजमी

दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका

उमैर नजमी

दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ

तिश्ना बरेलवी

ग़लत की हिज्र में हासिल मुझे क़रार नहीं

तिलोकचंद महरूम

गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद

तौसीफ़ तबस्सुम

बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत

तौसीफ़ तबस्सुम

मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा

तौक़ीर तक़ी

याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है

तौक़ीर तक़ी

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

तौक़ीर तक़ी

फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली

तसनीम फ़ारूक़ी

तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है

तसनीम आबिदी

मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है

तसनीम आबिदी

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

हमारी क़ुर्बतों में फ़ासला न रह जाए

तसनीम आबिदी

मैं रोज़-ए-हिज्र को बरबाद करता रहता हूँ

तरकश प्रदीप

तू कहाँ है मुझे ओ ख़्वाब दिखाने वाले

तारिक़ राशीद दरवेश

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं

तारिक़ नईम

ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में

तारिक़ नईम

आज किस ख़्वाब की ताबीर नज़र आई है

तारिक़ नईम

यहाँ के लोग हैं बस अपने ही ख़याल में गुम

तारिक़ मतीन

निगहबान-ए-चमन अब धूप और पानी से क्या होगा

तारिक़ मतीन

कुछ दूर तक तो इस की सदा ले गई मुझे

तारिक़ बट

दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत

तनवीर अंजुम

रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं

तालिब अली खान ऐशी

फिर क़िस्सा-ए-शब लिख देने के ये दिल हालात बनाए है

तालीफ़ हैदर

हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं

तालीफ़ हैदर

मिला था हिज्र के रस्ते में सुब्ह की मानिंद

ताजदार आदिल

तिलिस्म-ए-इश्क़ था सब उस का साथ होने तक

ताजदार आदिल

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