इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरज़ी है मुझे
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1644) Peoples Rate This
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ
तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
इस लिए रौशनी में ठंडक है
आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ