मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
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तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
जब उस की तस्वीर बनाया करता था
ये एक बात समझने में रात हो गई है
तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे