तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
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जब उस की तस्वीर बनाया करता था
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है