वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
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मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
जब उस की तस्वीर बनाया करता था
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें