आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ
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ये एक बात समझने में रात हो गई है
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
जब उस की तस्वीर बनाया करता था