इस लिए रौशनी में ठंडक है
कुछ चराग़ों को नम किया गया है
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तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है
ये एक बात समझने में रात हो गई है
जब उस की तस्वीर बनाया करता था
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है