मैं तिरे हिज्र में जो ज़िंदा हूँ
सोचता हूँ विसाल से आगे
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इन बातों पर मत जाना जो आम हुईं
हर्फ़
तुम हमारे ख़ून की क़ीमत न पूछो
ये जो शीशा है दिल-नुमा मुझ में
हर दर्द की दवा भी ज़रूरी नहीं कि हो
तीरगी की क्या अजब तरकीब है ये
बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
रहता है ज़ेहन ओ दिल में जो एहसास की तरह
ख़्वाहिशों की बादशाही कुछ नहीं
मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
जो तिरे इंतिज़ार में गुज़रे
जो बहुत बे-क़रार रखते थे