होश Poetry (page 12)

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़िंदगी दर्द की कहानी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की

फ़िगार उन्नावी

तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने

फ़िगार उन्नावी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रुबा मेरे बाद

फ़ज़ल हुसैन साबिर

अचार का मर्तबान

फ़य्याज़ तहसीन

ग़म दुनिया के याद जब आएँ उस की याद भी आने दो

फ़े सीन एजाज़

सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ

फ़रताश सय्यद

जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना

फ़ारूक़ बाँसपारी

ये सौदा इश्क़ का आसान सा हे

फ़ारूक़ बख़्शी

तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है

फरीहा नक़वी

इतनी पी जाए कि मिट जाए मैं और तू की तमीज़

फ़रहत शहज़ाद

ये फुर्क़तों में लम्हा-ए-विसाल कैसे आ गया

फ़रहत नदीम हुमायूँ

इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से

फ़रहत कानपुरी

तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम

फ़रहत एहसास

पैकर-ए-अक़्ल तिरे होश ठिकाने लग जाएँ

फ़रहत एहसास

तक़ाज़ा

फ़रीद इशरती

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

फ़रीद इशरती

याँ होश से बे-ज़ार हुआ भी नहीं जाता

फ़ानी बदायुनी

वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम

फ़ानी बदायुनी

ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई

फ़ानी बदायुनी

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

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