होश Poetry (page 13)

मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया

फ़ानी बदायुनी

मिज़ाज-ए-दहर में उन का इशारा पाए जा

फ़ानी बदायुनी

माया-ए-नाज़-ए-राज़ हैं हम लोग

फ़ानी बदायुनी

ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा

फ़ानी बदायुनी

जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या

फ़ानी बदायुनी

जीने की है उम्मीद न मरने का यक़ीं है

फ़ानी बदायुनी

जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर

फ़ानी बदायुनी

जज़्ब-ए-दिल जब ब-रू-ए-कार आया

फ़ानी बदायुनी

हर तबस्सुम को चमन में गिर्या-सामाँ देख कर

फ़ानी बदायुनी

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है

फ़ानी बदायुनी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं

फ़ना बुलंदशहरी

न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी

फ़ना बुलंदशहरी

मक़ाम-ए-होश से गुज़रा मकाँ से ला-मकाँ पहुँचा

फ़ना बुलंदशहरी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

जब तक मिरी निगाह में तेरा जमाल है

फ़ना बुलंदशहरी

हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है

फ़ना बुलंदशहरी

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

यहाँ से शहर को देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जरस-ए-गुल की सदा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किए आरज़ू से पैमाँ जो मआल तक न पहुँचे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शब-गर्दों के लिए इक नज़्म

फ़हीम शनास काज़मी

ऐ यार नसीहत को अगर गोश करे तू

फ़ाएज़ देहलवी

नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा

एहसान दानिश

शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

एक रहज़न को अमीर-ए-कारवाँ समझा था मैं

द्वारका दास शोला

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