होश Poetry (page 11)

खोया हुआ सा रहता हूँ अक्सर मैं इश्क़ में

हादी मछलीशहरी

बे-महल है गुफ़्तुगू हैं बे-असर अशआर अभी

हबीब तनवीर

नीलो

हबीब जालिब

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से

हबीब मूसवी

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

हबीब मूसवी

तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपने अंजाम से डरता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

फ़राख़-दस्त का ये हुस्न-ए-तंग-दस्ती है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में

ग़ुलाम मौला क़लक़

जल्वा-ए-हुस्न अगर ज़ीनत-ए-काशाना बने

ग़ुबार भट्टी

अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है

ग़ज़नफ़र

उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम

ग़मगीन देहलवी

मिरा उस के पस-ए-दीवार घर होता तो क्या होता

ग़मगीन देहलवी

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ

ग़ालिब

बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश

ग़ालिब

ज़िंदगी से उम्र-भर तक चलने का वादा किया

गौतम राजऋषि

अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया

गणेश बिहारी तर्ज़

साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा

गणेश बिहारी तर्ज़

माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ

गणेश बिहारी तर्ज़

कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच

गणेश बिहारी तर्ज़

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