होश Poetry (page 7)

दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह

साहिर देहल्वी

अयाँ हो रंग में और मिस्ल-ए-बू गुल में निहाँ भी हो

साहिर देहल्वी

वो हक़ीक़त में एक लम्हा था

सग़ीर मलाल

जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में

साग़र सिद्दीक़ी

तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए

साग़र सिद्दीक़ी

ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है

साग़र सिद्दीक़ी

सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे

साग़र निज़ामी

फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है

साग़र निज़ामी

कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ

साग़र मेहदी

जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो

सफ़ी लखनवी

हम भी उसी के साथ गए होश से 'सईद'

सईद अहमद

होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया

सईद अहमद

अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले

सादिक़ नसीम

दिल को पैहम दर्द से दो-चार रहने दीजिए

सादिक़ इंदौरी

ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे

सदा अम्बालवी

जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर

सबा अकबराबादी

पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा

रियाज़ ख़ैराबादी

मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे

रिन्द लखनवी

अब भी उसी तरह से इसे इंतिज़ार है

रज़ी रज़ीउद्दीन

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

रज़ी मुजतबा

शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का

रज़ा अज़ीमाबादी

ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है

रविश सिद्दीक़ी

शिकस्त-ए-रंग-ए-तमन्ना को अर्ज़-ए-हाल कहूँ

रविश सिद्दीक़ी

ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ

रविश सिद्दीक़ी

कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ

रविश सिद्दीक़ी

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