प्रेम Poetry (page 60)

वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं

गुलज़ार बुख़ारी

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

जब भी ये दिल उदास होता है

गुलज़ार

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ज़िंदगी इश्क़-ओ-मोहब्बत से जवाँ होती है

ग़ुलाम नबी हकीम

ज़िंदगी इश्क़-ओ-मोहब्बत से जवाँ होती है

ग़ुलाम नबी हकीम

अब के बाज़ार में ये तुर्फ़ा तमाशा देखा

गुलाम जीलानी असग़र

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस क़दर मुझ को ना-तवानी है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

फिर मुझे जीने की दुआ दी है

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

ज़बान रक़्स में है और झूमता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

मुझ पे तू मेहरबान है प्यारे

गोपाल मित्तल

रोज़ रौशन रहें हालात ज़रूरी तो नहीं

गोपाल कृष्णा शफ़क़

रह गई लुट कर बहार-ए-ज़िंदगी

गोपाल कृष्णा शफ़क़

हर घड़ी बीमार हो कर रह गई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

बात अपनों की करूँ मैं किसी बेगाने से

गोपाल कृष्णा शफ़क़

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कौन जाने था उस का नाम-ओ-नुमूद

ग़ुलाम मौला क़लक़

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