कौन जाने था उस का नाम-ओ-नुमूद
मेरी बर्बादी से बना है इश्क़
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गर्दन को झुका देता है अदना एहसान
दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता है 'क़लक़'
झगड़ा था जो दिल पे उस को छोड़ा
बानो ने कहा क़तरा नहीं शीर का है
ज़ुहहाद का ग़फ़लत से है औराद-ओ-सुजूद
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
किस तरह से गिर्या को न हो तुग़्यानी
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़