प्रेम Poetry (page 58)

साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई

हफ़ीज़ जौनपुरी

हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिया जब जाम-ए-मय साक़ी ने भर के

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल है तो तिरे वस्ल के अरमान बहुत हैं

हफ़ीज़ जौनपुरी

अजब ज़माने की गर्दिशें हैं ख़ुदा ही बस याद आ रहा है

हफ़ीज़ जौनपुरी

ना-कामी-ए-इश्क़ या कामयाबी

हफ़ीज़ जालंधरी

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है

हफ़ीज़ जालंधरी

इलाही एक ग़म-ए-रोज़गार क्या कम था

हफ़ीज़ जालंधरी

है मुद्दआ-ए-इश्क़ ही दुनिया-ए-मुद्दआ

हफ़ीज़ जालंधरी

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

बसंती तराना

हफ़ीज़ जालंधरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है

हफ़ीज़ जालंधरी

वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे

हफ़ीज़ जालंधरी

शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को

हफ़ीज़ जालंधरी

मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का

हफ़ीज़ जालंधरी

मजाज़ ऐन-ए-हक़ीक़त है बा-सफ़ा के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया

हफ़ीज़ जालंधरी

किसी के रू-ब-रू बैठा रहा मैं बे-ज़बाँ हो कर

हफ़ीज़ जालंधरी

कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे

हफ़ीज़ जालंधरी

आशिक़ सा बद-नसीब कोई दूसरा न हो

हफ़ीज़ जालंधरी

ये तमीज़-ए-इश्क़-ओ-हवस नहीं है हक़ीक़तों से गुरेज़ है

हफ़ीज़ होशियारपुरी

जब कभी हम ने किया इश्क़ पशेमान हुए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

ग़म-ए-ज़िंदगानी के सब सिलसिले

हफ़ीज़ होशियारपुरी

राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

फिर से आराइश-ए-हस्ती के जो सामाँ होंगे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

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