प्रेम Poetry (page 64)

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी

फ़ुज़ैल जाफ़री

जी तन में नहीं न जान बाक़ी

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

नए जहाँ में पुरानी शराब ले आए

फ़ितरत अंसारी

हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन

फ़ितरत अंसारी

उमीद की कोई चादर तो सामने आए

फ़िरदौस गयावी

ये ज़िल्लत-ए-इश्क़ तेरे हाथों

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़िंदगी दर्द की कहानी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये मौत-ओ-अदम कौन-ओ-मकाँ और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी

वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

रस्म-ओ-राह-ए-दहर क्या जोश-ए-मोहब्बत भी तो हो

फ़िराक़ गोरखपुरी

रात भी नींद भी कहानी भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

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