अभिव्यक्ति Poetry (page 5)

अब जा कर एहसास हुआ है प्यार भी करना था

शफ़ीक़ सलीमी

भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो

शाद अज़ीमाबादी

जिसे पाला था इक मुद्दत तक आग़ोश-ए-तमन्ना में

शाद अज़ीमाबादी

नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे

शानुल हक़ हक़्क़ी

मयस्सर जिन की नज़रों को तिरे गेसू के साए हैं

शाद आरफ़ी

क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या

शाद आरफ़ी

जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए

सीमाब अकबराबादी

बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बिंत-ए-हव्वा

सरवत ज़ेहरा

शब-ए-तारीक चुप थी दर-ओ-दीवार चुप थे

सरवर अरमान

वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले

सरवर आलम राज़

नज़्म

सरफ़राज़ ख़ालिद

मौजा-ए-रेग-ए-रवान-ए-ग़म में बह के देखना

सरदार सलीम

एक नाज़ुक दिल के अंदर हश्र बरपा कर दिया

सरस्वती सरन कैफ़

मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले

साक़ी फ़ारुक़ी

सीमिया

सलमान अंसारी

ज़ब्त की हद से गुज़र कर ख़ार तो होना ही था

सलीम शुजाअ अंसारी

इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है

सालिम सलीम

तर्ज़-ए-इज़हार में कोई तो नया-पन होता

सलीम शाहिद

मिरी थकन मिरे क़स्द-ए-सफ़र से ज़ाहिर है

सलीम शाहिद

मत पूछ कि इस पैकर-ए-ख़ुश-रंग में क्या है

सलीम शाहिद

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी

सलीम कौसर

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

सलीम कौसर

उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया

सलीम अहमद

किन नक़ाबों में है मस्तूर वो हुस्न-ए-मा'सूम

सलीम अहमद

जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए

सलीम अहमद

सोए हुओं में ख़्वाब से बेदार कौन है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

जुर्म-ए-इज़हार-ए-तमन्ना आँख के सर आ गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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