और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं
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अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
तमाम उम्र सितारे तलाश करता फिरा
सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया
ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया
जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है
इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता
अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है
क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम