जबीं Poetry (page 8)

सहाफ़ी से

हबीब जालिब

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

हबीब जालिब

किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर

हबीब मूसवी

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़

हबीब मूसवी

जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

किताबें

गुलज़ार

हम तो कितनों को मह-जबीं कहते

गुलज़ार

जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है

ग़ुलाम नबी हकीम

ठुकरा के चले जबीं को मेरी

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मुझे किस तरह से न हो यक़ीं कि उसे ख़िज़ाँ से गुरेज़ है

ग़ुबार भट्टी

वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

तुझे किस तरह छुड़ाऊँ ख़लिश-ए-ग़म-ए-निहाँ से

फ़िज़ा जालंधरी

हुस्न-ए-फ़ितरत के अमीं क़ातिल-ए-किरदार न बन

फ़ितरत अंसारी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

लहू हमारी जबीं का किसी के चेहरे पर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है

फ़सीह अकमल

यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं

फ़ारूक़ मुज़्तर

ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो

फ़रहान सालिम

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