जबीं Poetry (page 7)

गाली सही अदा सही चीन-ए-जबीं सही

इंशा अल्लाह ख़ान

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीं पर रह गया

इम्तियाज़ अहमद

हम न दुनिया के हैं न दीं के हैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

हर राहत-ए-जाँ लम्हे से उफ़्ताद की ज़िद है

इकराम आज़म

तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी

इफ़्तिख़ार मुग़ल

बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है

इब्न-ए-सफ़ी

लब-ओ-रुख़्सार ओ जबीं से मिलिए

इब्न-ए-सफ़ी

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब

हुसैन मजरूह

पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया

हीरानंद सोज़

मिरा ख़त पढ़ लिया उस ने मगर ये तो बता क़ासिद

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई

हातिम अली मेहर

कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे

हातिम अली मेहर

तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है

हस्सान अहमद आवान

रखा पा जहाँ में नगारा ज़मीं पर

हसरत अज़ीमाबादी

जो कुशूद-ए-कार-ए-तिलिस्म है वो फ़क़त हमारा ही इस्म है

हनीफ़ अख़गर

देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग

हनीफ़ अख़गर

वो चाल चल कि ज़माना भी साथ चलने लगे

हमीद नागपुरी

जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

हकीम मंज़ूर

जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है

हैरत गोंडवी

दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ

हैदर अली आतिश

बुलबुल गुलों से देख के तुझ को बिगड़ गया

हैदर अली आतिश

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

आ जाओ कि मिल कर हम जीने की बिना डालें

हफ़ीज़ बनारसी

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