जबीं Poetry (page 9)

कोई जब मिल के मुस्कुराया था

फ़रह इक़बाल

जीने की है उम्मीद न मरने का यक़ीं है

फ़ानी बदायुनी

तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी

फ़ना बुलंदशहरी

ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिल

फ़ना बुलंदशहरी

मज़दूर औरतें

फख्र ज़मान

करो कज जबीं पे सर-ए-कफ़न मिरे क़ातिलों को गुमाँ न हो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ुदा वो वक़्त न लाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

पछतावा

फ़हमीदा रियाज़

चादर और चार-दीवारी

फ़हमीदा रियाज़

ऐ मुबारज़-तलब

फ़हीम शनास काज़मी

साए में आबलों की जलन और बढ़ गई

एजाज़ रहमानी

अब कर्ब के तूफ़ाँ से गुज़रना ही पड़ेगा

एजाज़ रहमानी

मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो

एहसान दानिश

कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं

एहसान दानिश

आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी

एहसान दानिश

ज़हर बीमार को मुर्दे को दवा दी जाए

दिलावर फ़िगार

आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

एक रहज़न को अमीर-ए-कारवाँ समझा था मैं

द्वारका दास शोला

मज़दूर

दाऊद ग़ाज़ी

राहत कहाँ नसीब थी जो अब कहीं नहीं

दत्तात्रिया कैफ़ी

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

उस से क्या ख़ाक हम-नशीं बनती

दाग़ देहलवी

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

मोहब्बत किस क़दर यास-आफ़रीं मालूम होती है

चराग़ हसन हसरत

हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने

चरख़ चिन्योटी

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

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