जगह Poetry (page 17)

क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से अहल-ए-जहाँ मफ़र नहीं

दर्शन सिंह

मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ब-तर्ज़-ए-ख़्वाब सजानी पड़ी है आख़िर-कार

दानियाल तरीर

जिस जगह बैठे मिरा चर्चा किया

दाग़ देहलवी

हज़रत-ए-'दाग़' है ये कूचा-ए-क़ातिल उठिए

दाग़ देहलवी

मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है

दाग़ देहलवी

मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया

दाग़ देहलवी

खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से

दाग़ देहलवी

जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता

दाग़ देहलवी

इस नहीं का कोई इलाज नहीं

दाग़ देहलवी

ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया

दाग़ देहलवी

देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

वो क्या जवाब दे अर्ज़-ए-सवाल से पहले

चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी

देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

हुब्ब-ए-क़ौमी

चकबस्त ब्रिज नारायण

जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे

बूम मेरठी

इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की

बूम मेरठी

इश्क़ जो ना-गहाँ नहीं होता

बिस्मिल सईदी

तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम

बिस्मिल अज़ीमाबादी

बदन पे ज़ख़्म सजाए लहू लबादा किया

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

तुम्हारी याद का इक दायरा बनाती हूँ

बिल्क़ीस ख़ान

गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में

भारतेंदु हरिश्चंद्र

हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे

भारत भूषण पन्त

हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'

बेख़ुद देहलवी

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

पयाम ले के जो पैग़ाम-बर रवाना हुआ

बेखुद बदायुनी

मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए

बासित भोपाली

गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी

बासिर सुल्तान काज़मी

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