जगह Poetry (page 15)

पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

रिश्ता खुजियाया हुआ कुत्ता है

फ़ज़्ल ताबिश

ग़म-ए-दौराँ में कहाँ बात ग़म-ए-जानाँ की

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मैं जिस जगह हूँ वहाँ बूद-ओ-बाश किस की है

फ़ाज़िल जमीली

तुम ने क्यूँ दिल में जगह दी है बुतों को 'साबिर'

फ़ज़ल हुसैन साबिर

तेरी तस्वीर को तस्कीन-ए-जिगर समझे हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

ख़ाक में मुझ को मिरी जान मिला रक्खा है

फ़ज़ल हुसैन साबिर

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ठेस कुछ ऐसी लगी है कि बिखरना है उसे

फ़ातिमा हसन

रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं

फ़ातिमा हसन

हमारी फ़त्ह के अंदाज़ दुनिया से निराले हैं

फ़सीह अकमल

ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है

फ़सीह अकमल

शहर

फ़ारूक़ मुज़्तर

रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ अब के बहारों का भी अंदाज़ नया है

फ़ारिग़ बुख़ारी

उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल में

फ़रहत एहसास

उम्र बे-वज्ह गुज़ारे भी नहीं जा सकते

फ़रहत एहसास

कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे

फ़रहत एहसास

आख़िर उस के हुस्न की मुश्किल को हल मैं ने किया

फ़रहत एहसास

वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा

फ़ानी बदायुनी

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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