हमारी फ़त्ह के अंदाज़ दुनिया से निराले हैं
कि परचम की जगह नेज़े पे अपना सर निकलता है
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ये वो सफ़र है जहाँ ख़ूँ-बहा ज़रूरी है
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
जो तू नहीं है तो लगता है अब कि तू क्या है
दे गया लिख कर वो बस इतना जुदा होते हुए
कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए
अब किसी और का तुम ज़िक्र न करना मुझ से
लटकाई दीवार पे किस ने हातिम की तस्वीर
सितारों की तरह अल्फ़ाज़ की ज़ौ बढ़ती जाती है
बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं
हमीं पे ख़त्म हैं जौर-ओ-सितम ज़माने के
चश्म-ए-हैरत को तअल्लुक़ की फ़ज़ा तक ले गया
उस की दीवार पे मनक़ूश है वो हर्फ़-ए-वफ़ा