हमीं पे ख़त्म हैं जौर-ओ-सितम ज़माने के
हमारे बाद उसे किस की आरज़ू होगी
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मुज़्तरिब दिल की कहानी और है
मुद्दआ इज़हार से खुलता नहीं है
ये वो सफ़र है जहाँ ख़ूँ-बहा ज़रूरी है
मुद्दत से वो ख़ुशबू-ए-हिना ही नहीं आई
जड़ों से सूखता तन्हा शजर है
दे गया लिख कर वो बस इतना जुदा होते हुए
चश्म-ए-हैरत को तअल्लुक़ की फ़ज़ा तक ले गया
उस की दीवार पे मनक़ूश है वो हर्फ़-ए-वफ़ा
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
किसी के सामने इस तरह सुर्ख़-रू होगी
किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है
हर एक आँख में आँसू हर एक लब पे फ़ुग़ाँ