ठेस कुछ ऐसी लगी है कि बिखरना है उसे
दिल में धड़कन की जगह दर्द है और जान नहीं
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मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो
मैं ने पहुँचाया उसे जीत के हर ख़ाने में
मैं ने माँ का लिबास जब पहना
जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में
मेरी बेटी चलना सीख गई
कितने अच्छे लोग थे क्या रौनक़ें थीं उन के साथ
रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं
नहीं समझी थी जो समझा रही हूँ
और कोई नहीं है उस के सिवा
बिछड़ रहा था मगर मुड़ के देखता भी रहा
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था