गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
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बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़
जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है
ख़त्म हुईं सारी बातें
तुझ को देख रहा हूँ मैं
दूर साया सा है क्या फूलों में
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
कितना काम करेंगे
ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं
बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई
तेरे दिए हुए दुख