तेरे दिए हुए दुख
तेरे नाम करेंगे
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बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़
दूर साया सा है क्या फूलों में
हम जैसे तेग़-ए-ज़ुल्म से डर भी गए तो क्या
तू जब सामने होता है
'बासिर' तुम्हें यहाँ का अभी तजरबा नहीं
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है
कर लिया दिन में काम आठ से पाँच
दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत
जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं