जाओ Poetry (page 20)

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

ग़ालिब

सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है

ग़ालिब

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

कब वो सुनता है कहानी मेरी

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

किराया-दार

गीताञ्जलि राय

वो रातों-रात 'सिरी-कृष्ण' को उठाए हुए

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल-दुखे रोए हैं शायद इस जगह ऐ कू-ए-दोस्त

फ़िराक़ गोरखपुरी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये सन्नाटा बहुत महँगा पड़ेगा

फ़ज़्ल ताबिश

ख़्वाहिशों के हिसार से निकलो

फ़ज़्ल ताबिश

दास्तानों में मिले थे दास्ताँ रह जाएँगे

फ़ाज़िल जमीली

अब तो अश्कों की रवानी में न रक्खी जाए

फ़ाज़िल जमीली

सवाल सख़्त था दरिया के पार उतर जाना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

बढ़ाना हाथ पकड़ने को रंग मुट्ठी में

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था

फ़ातिमा हसन

कब उस की फ़त्ह की ख़्वाहिश को जीत सकती थी

फ़ातिमा हसन

सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था

फ़ातिमा हसन

यूँ मुसल्लत तो धुआँ जिस्म के अंदर तक है

फ़र्रुख़ जाफ़री

तमाम फेंके गए पत्थरों पे भारी था

फ़र्रुख़ जाफ़री

मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें

फ़र्रुख़ जाफ़री

तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का

फ़ारूक़ नाज़की

अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना

फ़ारूक़ मुज़्तर

शहर-ए-दोस्त

फ़ारूक़ बख़्शी

जब हम पहली बार मिले थे

फ़ारूक़ बख़्शी

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