जाओ Poetry (page 19)

किनारे पर कोई आया था

गुलज़ार

एक दौर

गुलज़ार

आदत

गुलज़ार

एक परवाज़ दिखाई दी है

गुलज़ार

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं

गुहर खैराबादी

उस को ग़फ़लत-पेशा कह आते हैं हम

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

बात कुछ भी न थी फ़साना हुआ

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

मिरे पर न बाँधो

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

काविश-ए-बे-सूद

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सुख़न का लहजा गुमान-ख़ाने में रह गया है

ग़ज़नफ़र हाशमी

ज़मीं के साथ फ़लक के सफ़र में हम भी हैं

ग़यास मतीन

तुझे मैं भूल जाना चाहता हूँ

ग़यास अंजुम

लिपट रही हैं जो तुझ से दुआएँ मेरी हैं

ग़यास अंजुम

मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग

ग़मगीन देहलवी

मैं ने हर-चंद कि उस कूचे में जाना छोड़ा

ग़मगीन देहलवी

ज़ोफ़ से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ

ग़ालिब

तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद

ग़ालिब

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल

ग़ालिब

देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा

ग़ालिब

अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह

ग़ालिब

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा

ग़ालिब

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