जिन्न Poetry (page 29)

ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ये तमन्ना है कि इस तरह मुसलमाँ होता

फ़ना बुलंदशहरी

तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

आँखों में नमी आई चेहरे पे मलाल आया

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ हम-सफ़रो क्यूँ न यहीं शहर बसा लें

फख्र ज़मान

अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे

फ़ैज़ी

जब तक मिज़ाज-ए-दोस्त में कुछ बरहमी रही

फ़ैज़ुल हसन

उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तौक़-ओ-दार का मौसम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शोरिश-ए-ज़ंजीर बिस्मिल्लाह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सर-ए-वादी-ए-सीना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

निसार मैं तेरी गलियों के

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ुशा ज़मानत-ए-ग़म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़त्म हुई बारिश-ए-संग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जरस-ए-गुल की सदा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक शहर-आशोब का आग़ाज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दो इश्क़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किस हर्फ़ पे तू ने गोश-ए-लब ऐ जान-ए-जहाँ ग़म्माज़ किया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बात बस से निकल चली है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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