जिन्न Poetry (page 27)

रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही

गणेश बिहारी तर्ज़

वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई

फ़ुज़ैल जाफ़री

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

इंतिख़ाब-ए-निगह-ए-शौक़ को मुश्किल भी नहीं

फ़ितरत अंसारी

निगाह-ए-नाज़ ने पर्दे उठाए हैं क्या क्या

फ़िराक़ गोरखपुरी

लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया

फ़ाज़िल अंसारी

और क्या मुझ से कोई साहिब-नज़र ले जाएगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तमाशा फिर सर-ए-बाज़ार करना

फ़य्याज़ तहसीन

नज़्म

फ़ातिमा हसन

जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में

फ़ातिमा हसन

अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर

फ़र्रुख़ जाफ़री

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की

फ़ारूक़ नाज़की

ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई

फ़ारूक़ बाँसपारी

ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा

फरीहा नक़वी

नई मंज़िल का जुनूँ तोहमत-ए-गुमराही है

फ़ारिग़ बुख़ारी

अपने दरिया की प्यास

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखा तुझे तो आँखों ने ऐवाँ सजा लिए

फ़ारिग़ बुख़ारी

था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी

फ़रहत नदीम हुमायूँ

हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

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