जवानी Poetry (page 6)

न अंगिया न कुर्ती है जानी तुम्हारी

रिन्द लखनवी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ

रज़ा अज़ीमाबादी

ख़ुश्की पे रहूँगी कभी पानी में रहूँगी

राशिदा माहीन मलिक

वस्ल के दिन का इशारा है कि ढल जाऊँगा

रशीद लखनवी

मार डालेगी हमें ये ख़ुश-बयानी आप की

रशीद लखनवी

कुछ न कुछ सोचते रहा कीजे

रसा चुग़ताई

तुम पसीना मत कहो है जाँ-फ़िशानी का लिबास

रम्ज़ अज़ीमाबादी

लफ़्ज़ बे-जाँ हैं मिरे रूह-ए-मआनी मुझे दे

राम रियाज़

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है

रईस अमरोहवी

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई

इक़बाल अशहर

रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया

इक़बाल अशहर

बंदगी हम ने तो जी से अपनी ठानी आप की

इंशा अल्लाह ख़ान

एक मुद्दत से तो ठहरे हुए पानी में हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

आइना देख के फ़रमाते हैं

इम्दाद इमाम असर

रोते हैं सुन के कहानी मेरी

इम्दाद इमाम असर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

इमदाद अली बहर

चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ

इमदाद अली बहर

सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की

इमाम बख़्श नासिख़

आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे

इमाम बख़्श नासिख़

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

अन-कही

हिमायत अली शाएर

क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई

हातिम अली मेहर

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

हातिम अली मेहर

न सूरत कहीं शादमानी की देखी

हसरत मोहानी

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