आइना देख के फ़रमाते हैं
किस ग़ज़ब की है जवानी मेरी
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उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें
तड़प तड़प के तमन्ना में करवटें बदलीं
दिल न देते उसे तो क्या करते
क़ैद-ए-तन से रूह है नाशाद क्या
किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात
दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ
पा रहा है दिल मुसीबत के मज़े
ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया
ठिकाना है कहीं जाएँ कहाँ नाचार बैठे हैं
मेरे सर में जो रात चक्कर था
शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है
दिल की हालत से ख़बर देती है