कमनद Poetry (page 2)

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

टूटी जहाँ जहाँ पे कमंद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तौक़-ओ-दार का मौसम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गिरानी-ए-शब-ए-हिज्राँ दो-चंद क्या करते

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़

चराग़ हसन हसरत

ज़ब्त-ए-नाला दिल-ए-फ़िगार न कर

बिर्ज लाल रअना

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द

बासित भोपाली

सिसकते फूलों का कोई भी दर्द-मंद नहीं

अतहर अज़ीज़

काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में

अरशद अली ख़ान क़लक़

लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के

अरशद अली ख़ान क़लक़

ग़ज़ल में जान पड़ी गुफ़्तुगू में फूल खिले

अरशद अब्दुल हमीद

कोई ज़ंजीर नहीं तार-ए-नज़र से मज़बूत

अनवर शऊर

उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से

अनवर शऊर

एक सौदा है लज़्ज़त-ए-ग़म है

अंजुम आज़मी

एक ख़्वाब और

अली सरदार जाफ़री

सर्द हैं दिल आतिश-ए-रू-ए-निगाराँ चाहिए

अली सरदार जाफ़री

दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी

अकबर इलाहाबादी

मुहासरा

अहमद फ़राज़

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

दुम

आदिल लखनवी

क्यूँ असीर-ए-गेसू-ए-ख़म-दार-ए-क़ातिल हो गया

अबुल कलाम आज़ाद

लोग हर-चंद पंद करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

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