कोई ज़ंजीर नहीं तार-ए-नज़र से मज़बूत
हम ने इस चाँद पे डाली है कमंद आँखों से
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1206) Peoples Rate This
ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में
कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं
बशारत हो कि अब मुझ सा कोई पागल न आएगा
अकेले क्या पस-ए-दीवार-ओ-दर गए हम तुम
क्या बे-मुरव्वती का शिकवा गिला किसी से
ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ
कुछ दिन तो कर तआ'वुन ऐ ख़ुश-सिफ़ात मुझ से
मैं ख़ाक हूँ आब हूँ हवा हूँ
इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
नहीं मिलते 'शुऊर' आँसू बहाते
पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है
तेरी आस पे जीता था मैं वो भी ख़त्म हुई