खफा Poetry (page 12)

मैं आइना था छुपाता किसी को क्या राहत

अमीन राहत चुग़ताई

ज़िंदगी एक सज़ा हो जैसे

अमीन राहत चुग़ताई

किसी मकाँ के दरीचे को वा तो होना था

अमीन राहत चुग़ताई

हुब्ब-ए-वतन

अल्ताफ़ हुसैन हाली

ख़ूबियाँ अपने में गो बे-इंतिहा पाते हैं हम

अल्ताफ़ हुसैन हाली

खुला है ज़ीस्त का इक ख़ुशनुमा वरक़ फिर से

आलोक यादव

जाने किस बात से दुखा है बहुत

आलोक मिश्रा

जाने किस बात से दुखा है बहुत

आलोक मिश्रा

या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन

अल्लामा इक़बाल

अब कोई ग़म ही नहीं है जो रुलाए मुझ को

अली इमरान

मेरी बेताबियों से घबरा कर

अलीम अख़्तर

दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए

अलीम अख़्तर

इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ फ़लसफ़े

आलम ख़ुर्शीद

आश्ना हो कर तग़ाफ़ुल आश्ना क्यूँ हो गए

अख़्तर शीरानी

मुद्दत से लापता है ख़ुदा जाने क्या हुआ

अख़्तर सईद ख़ान

मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार

अख़तर मुस्लिमी

कहाँ जाएँ छोड़ के हम उसे कोई और उस के सिवा भी है

अख़तर मुस्लिमी

वो ज़िंदगी है उस को ख़फ़ा क्या करे कोई

अख़्तर होशियारपुरी

ज़बान बंद रही दिल का मुद्दआ' न कहा

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

जुस्तुजू ने तिरी हर चंद थका रक्खा है

अख़लाक़ बन्दवी

आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे

अकबर अली खान अर्शी जादह

तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे

ऐश देहलवी

किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना

अहसन मारहरवी

चाहिए इश्क़ में इस तरह फ़ना हो जाना

अहसन मारहरवी

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे तो लोग समझे

अहमद सलमान

इक जिस्म हैं कि सर से जुदा होने वाले हैं

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

साँस लेना भी सज़ा लगता है

अहमद नदीम क़ासमी

ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे

अहमद मुश्ताक़

ख़ैर औरों ने भी चाहा तो है तुझ सा होना

अहमद मुश्ताक़

हमें सब अहल-ए-हवस ना-पसंद रखते हैं

अहमद मुश्ताक़

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