जाने किस बात से दुखा है बहुत
दिल कई रोज़ से ख़फ़ा है बहुत
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फूल से ज़ख़्मों का अम्बार सँभाले हुए हैं
क्या क़यामत है कि तेरी ही तरह से मुझ से
सवालों में ख़ुद भी है डूबी उदासी
ज़रा भी काम न आएगा मुस्कुराना क्या
धूप अब सर पे आ गई होगी
जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है
साल ये कौन सा नया है मुझे
दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था
हम मुसलसल इक बयाँ देते हुए
बुझे लबों पे तबस्सुम के गुल सजाता हुआ
बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा
आँखों का पूरा शहर ही सैलाब कर गया