मैं आइना था छुपाता किसी को क्या राहत
वो देखता मुझे जब भी ख़फ़ा तो होना था
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हमीं थे जान-ए-बहाराँ हमीं थे रंग-ए-तरब
अब अनासिर में तवाज़ुन ढूँडने जाएँ कहाँ
तीरगी ही तीरगी है बाम-ओ-दर में कौन है
रोज़ जो मरता है इस को आदमी लिक्खो कभी
देख कोह-ए-ना-रसा बन कर भरम रक्खा तिरा
मैं तिरी दस्तरस से बहुत दूर था
जरस-ए-मय ने पुकारा है उठो और सुनो
हम एक जाँ ही सही दिल तो अपने अपने थे
जो मय-कदे से भी दामन बचा बचा के चले
शोर करता फिर रहा हूँ ख़ुश्क पत्तों की तरह
किसी मकाँ के दरीचे को वा तो होना था